Monday, October 31, 2016 | 9:48:00 PM
फुटपाथ की दीवाली-
नगर को दीपक सजा रहे थे,
प्रकाश अमावस को लजा रहे थे,
सभी दुकानें भरी पड़ी थीं,
हर तरफ रौशनी की लड़ी थी,
लोग मस्ती में झूम रहे थे,
एक दूजे संग घूम रहे थे _
तभी कुछ बच्चे दिखे फुटपाथ पर,
अकेले से लगे ,थे सभी साथ मगर,
अपलक दुकानें निहार रहे थे,
आँखों से मानो पुकार रहे थे,
सपने भरे थे पर पेट थे खाली,
नयनों से मना रहे थे दीवाली,
राकेट,बम,फुलझड़ी,अनार,
दूर से देते उन्हें खुशियाँ हजार,
आकाश में छूटते रंगीं नजारे,
भुला रहे थे उनके दुख सारे,
उछल उछल वे नाच रहे थे,
कुछ गिरे पटाखे जाँच रहे थे,
एक उनमें से टॉफी ले आया,
बाँट-बाँट फिर सबने खाया,
मिठास में घुल गया उनका जहाँ,
था खाने को कुछ और कहाँ?
फिर भी मगन हो गा रहे थे,
'लक्ष्मी' को जीना सिखा रहे थे,
हतप्रभ सी मैं खड़ी रही थी,
मेरी हैरान आँखों में नमी थी,
समाज पर गुस्सा फूट रहा था,
इस खाई से दिल टूट रहा था,
चाहा रौशन करूँ रात ये काली,
खुशियों से भर दूँ उनकी दीवाली,
पास जा उनके मेरी दुनिया बदल गयी,
मैं उन्हें साथ ले बाजार निकल गयी ।
अर्चना अनुप्रिया ।
Posted By Archana Anupriya